Shudras and Vedic knowledge
प्रायः हम सुनते आ रहे है कि भारतीय समाज में हमेशा से ही शूद्रों को प्रताड़ित किया गया है उन्हे हमेशा ही सारी सुविधाओं से वंचित रखा गया है। समाज के अन्य वर्णों के लोग उनकी उन्नति को नहीं देखना चाहते थे और ऐसी ही बहुत सी कहानियाँ को हम सुनते आ रहे है। ऐसी ही एक कहानी है कि शूद्रों को वेदों का अध्ययन करना वर्जित था, यदि कोई शूद्र वेदों का अध्ययन करता हुआ पाया जाता था तो उसको बहुत कड़ी सजा दी जाती थी कभी कभी तो उसके प्राण भी ले लिया जाता था। अब ये तथ्य कितना सत्य या असत्य है इसका खंडन आज रामायण की एक घटना से करते है।
श्रवण कुमार की कहानी एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, जो हमें विचार करने पर मजबूर करती है कि वेदों की शिक्षा का अधिकार केवल विशिष्ट वर्ण या जाति के लोगों के लिए ही नहीं था। इस अनूठी कहानी में श्रवण कुमार, एक शूद्र माता और वैश्य पिता के पुत्र, वेदों के अध्ययन में महारत प्राप्त करते हैं और अपने जीवन को धर्म और शिक्षा के साथ समृद्ध करते हैं। इस कहानी के माध्यम से हम उन शिक्षाओं की महत्वपूर्णता को समझते हैं जो समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए उपलब्ध हैं।
राजा दशरथ कौशल्या से कहते है कि मैं शिकार खेलने की लिए धनुष बाण लिए रथ में बैठ सरयू के तट पर पहुँचा, मैं वहाँ गया जहां रात के समय दुष्ट जन्तु जल पीने के लिए आया करते थे इसी बीच में अंधेरे में जल भरते हुए घड़े का शब्द सुन मैं समझ कि कोई हाथी चिघाड़ रहा है तो मैंने सर्प के विष से युक्त बाण उस आ रही आवाज की ओर छोड़ा। मैं ज्योंही उस बाण को छोड़ा त्योंही किसी वनवासी की आवाज मुझे सुनाई पड़ा। वह तपश्वी हाय हाय कर के जल में गिर पड़ा और बोला कि मुझ ऋषि को कोई बाण क्यों मरेगा मैं तो वाणी और शरीर से किसी अन्य जीव को नहीं सताता और वन में रहकर कंदमूल फल खाता हूँ। मुझे उतनी मेरे प्राण जाने की चिंता नहीं है जिनती मेरे वृद्ध माता पिता का है मात्र मैं ही उनका सहारा था। उन मुनिकुमार की ऐसी वाणी को सुनकर धनुष बाण मेरे हाथ से गिर गया। जब मैं उसके पास गया तो देखा बाण लगने के कारण उसका पूरा शरीर रक्त से लथपथ था। उन मुनि कुमार ने मुझसे कहा कि हे राजन मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था मैं तो बस यह पर अपने मत पिता के लिए पानी भरने आया था, तुमने तो एक ही बाण में मेरा मर्मस्थल घायल कर दिया। और मेरे अंधे माता पिता को भी मार ही डाला क्योंकि वो वृद्ध जो अंधे है वो क्या ही कर सकते है। इसलिए हे राजन ये समाचार तुरंत उनसे जाकर कहो नहीं तो क्रोध में वे तुम्हें वेसे ही भस्म कर देंगे जैसे आग वन को कर देता है। वो राजा से कहते है कि आप ब्रह्महत्या की पाप का भय अपने माँ से निकाल दीजिए क्योंकि मैं ब्राह्मण नहीं हूँ मेरी माता शूद्र है और मेरे पिता वैश्य है, बस आप जाकर ये समाचार शीघ्र ही मेरे माता पिता को बताईए इतना कहकर उन मुनिकुमार ने अपना शरीर त्याग दिया। फिर मैं उन मुनिकुमार के कलसे में जल भरकर उनके माता पिता कर आश्रम में आया। मैं उनसे कहा कि हे मुनि मैं दशरथ नाम का क्षत्रिय हूँ और उनको पूरी घटना के बारे में बताया कि कैसे अनजाने में मेरे हाथों उनके पुत्र की हत्या हो गई, अब आप जैसा उचित समझे वैसा करें। मेरे किये हुए पाप का दारुण वृतांत मेरे ही मुख से सुन वो महात्मा मुनि मुझे तीव्र शाप ना दे सके । उन्होंने मुझसे कहा की तूने अनजाने में यह नीच कर्म किया है इसीलिए तू अभी तक जिंदा है नहीं तो तू क्या समस्त रघुकुल वंश ही समाप्त कर देता क्योंकि तूने मेरे पुत्र जैसे तपस्वी और ब्रह्मवादी की हत्या की है। वो महात्मा दुखी हो कर कहने लगे कि अब मैं रात में धर्मशास्त्र और पुराण आदि पढ़ते समय किसकी मनोहर और मधुर ध्वनि सुनूँगा। प्रातःकाल स्नान कर, संध्योपासन कर अब कौन मेरी सेवा करेगा। ( इस बात से यह सिद्ध होता है कि यज्ञ यज्ञा करने का अधिकार सभी वर्णों को था। ) अपने पुत्र को जल श्रद्धांजलि देकर उन महात्मा ने मुझसे ये कहा- हे राजन! भले ही तुमने मेरे पुत्र को अनजाने में मार है फिरभी मैं तुमको यह शाप देता हूँ हे राजन! इस समय जैसा मुझको पुत्रशोक हो रहा है उसी प्रकार तुम्हारी भी पुत्रशोक से ही मृत्यु होगी। तुम क्षत्रिय हो और तुमने अनजाने में मुनि की हत्या कर दी है इसलीये तुमको ब्रह्महत्या नही लगेगी ( यह से ऐसा प्रतीत होता है कि अगर किसी दूसरे वर्ण का भी व्यक्ति अगर शास्त्र व पुराण अध्ययन करता है तो वह ब्राह्मण ही होगा क्योंकि ब्रह्महत्या मात्र किसी ब्राह्मण को मारने से ही लगता है, श्रवण कुमार जन्म से ब्राह्मण नहीं थे फिर भी उनकी हत्या करने पर ब्रह्महत्या का पाप लगता इससे यह सिद्ध होता है कि किसी बबही वर्ण का व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है। ) किन्तु जिस प्रकार दाता को दान फल अवश्य मिलता है उसी प्रकार तुमको भी तुम्हारे कर्मों का फल मिलेगा और दुख से तुमको भी अपने प्राण त्यागने पड़ेंगे। राजा दशरथ कौशल्या से कहते है कि हे देवी इस प्रकार मुझे शाप देकर और बहुत विलाप करते हुए वो दोनों स्वर्ग को चले गए।
श्रवण कुमार की कहानी एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि प्राचीन भारतीय समाज में वेदों और शास्त्रों के अध्ययन पर कठोर जाति-आधारित प्रतिबंध पूरी तरह से सही नहीं हैं। श्रवण कुमार, जो एक शूद्र माता और वैश्य पिता से जन्मे थे, वेदों के समर्पित विद्वान थे और उन्होंने अपनी आस्था को पूरी निष्ठा से निभाया। उनका जीवन यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक ज्ञान का अधिकार केवल ब्राह्मणों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसे सभी के लिए उपलब्ध था जो इसे ईमानदारी और भक्ति के साथ प्राप्त करना चाहते थे।
यह कथा प्रचलित भ्रांतियों को चुनौती देती है और वेद शिक्षा में अंतर्निहित समावेशिता को उजागर करती है। यह समाज के सभी वर्गों के योगदान को पहचानने और मूल्यवान मानने के महत्व को रेखांकित करती है, चाहे उनका जन्म किसी भी जाति में हुआ हो। इन कहानियों को समझकर और साझा करके, हम अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की एक अधिक सटीक और सम्मानजनक सराहना को बढ़ावा दे सकते हैं।
श्रवण कुमार की भक्ति और प्राचीन भारतीय शिक्षा की समावेशी प्रकृति का उत्सव मनाकर, हम अपनी परंपराओं की एक अधिक न्यायसंगत और प्रबुद्ध दृष्टिकोण को प्रेरित कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सीखने और ज्ञान की सच्ची भावना हमारे समाज में निरंतर जीवित रहे।
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