हमारे जीवन में कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएं होती है जिनका कोई तर्क नहीं निकलता कि वो क्यों हुई है, उस घटना का उद्देश्य क्या है ये हमको पता ही नहीं चल पाता अगर आप इसका उत्तर किसी से पूछेंगे तो आपको अलग अलग लोग अलग अलग उत्तर देंगे।
ऐसी ही कुछ प्रश्नों का उत्तर रामायण में भी मिलता है। जब कैकेयी ने राम को राज्य छोड़कर वन जाने को कहा तो लक्ष्मण रामजी से कहते है कि धर्म के अनुसार ये गलत है और हमें इसका विरोध करना चाहिय तो रामजी उनको समझते हुए कहते है कि देखो अभी मैं राजा बनने वाला था और अभी मेरे पास कुछ भी नही है मैं वन जाने वाला हूं जिस तरह से ये सब कुछ हुआ है उसका तो कोई तर्क ही नहीं है क्योंकि मैंने आजतक ऐसे कोई कार्य ही नही किया जिससे माता कैकेई को कोई दुख पहुंचे उनको सदा ही माता कौशल्या की तरह ही समझा है और उन्होंने भी मुझमें और भारत में भी कभी कोई अंतर नही किया तो उनके मन में ऐसा कोई विचार आए जिससे मुझे दुख हो ये तो तर्क संगत ही नही है इसका अर्थ मात्र यही है कि मेरा भाग्य मुझे किसी और मार्ग पर ले जाना चाहता है और जब तक मैं उस मार्ग पर न चलूं तब तक मुझे पता ही नहीं चलेगा कि मेरे भाग्य का उद्देश्य क्या है?
इसलिए इस समय वनवास करना बिलकुल उचित है।
यानि रामजी भी यही कहते है कि हमे ब्रह्मांड बनाए हुए योजना पर हमेशा भरोसा करना चाहिए जो कुछ भी होगा उसके पीछे कोई कारण अवश्य होगा।
कचिदैवेन सौमित्रे योद्धुमुत्सहते पुमान् । यस्य न ग्रहणं किञ्चित्कर्मणेोऽन्यत्र दृश्यते ॥ २१
हे लक्ष्मण ! कर्मफल भोगने के सिवाय, जिसके जानने का अन्य कोई साधन ही नहीं है, उस देव प्रयवा भाग्य से लड़ने का कौन पुरुष साहस कर सकता है ॥ २१ ॥
असङ्कल्पितमेवेह यदकस्मात्प्रवर्तते । निवर्त्यारम्भमारव्धं ननु देवस्य कर्म तत् ॥ २४ ॥ जिसे करने के लिये कभी विचार भी न किया हो और वह अचानक हो जाय और जिस काम का विचार कर के करो और वह न हो, बस इसी को देव का कर्म समझना चाहिये ॥ २४ ॥
बालीमिकी रामायण